एक और भाजपा शासित राज्य में UCC लागू करने की तैयारी

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज। उत्तराखंड के बाद अब एक और बीजेपी शासित राज्य में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने की योजना है। इसके लिए एक समिति की घोषणा मंगलवार को हुई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने इस फैसले की जानकारी दी और कहा कि यह समिति ४५ दिनों के भीतर राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, जिसके बाद सरकार इस पर निर्णय लेगी। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने और कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति गठित की गई है।
सीएम पटेल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम संविधान की ७५वीं वर्षगांठ मना रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में काम किया जा रहा है। यह कदम सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के लिए उठाया जा रहा है।’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत का संविधान नागरिकों के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए है और सरकार इस दिशा में लगातार प्रयास कर रही है।
गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने कहा कि रिपोर्ट तैयार करने में सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। संघवी ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल ने यूसीसी (समान नागरिक संहिता) समिति का गठन किया है। इसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना देसाई करेंगी। सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सीएल मीना, अधिवक्ता आरसी कोडेकर, पूर्व कुलपति दक्षेश ठाकर और सामाजिक कार्यकर्ता गीता श्रॉफ भी इस समिति का हिस्सा होंगे। मुख्यमंत्री ने इस समिति को अगले ४५ दिनों में इस पर विस्तृत शोध करने और सरकार को रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।’
इससे पहले २७ जनवरी को उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के मैनुअल को मंजूरी दी। इसके बाद इसे लागू करने का रास्ता साफ हुआ। उत्तराखंड के २०२२ के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के प्रमुख चुनावी वादों में से ये एक था।
गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता कानून का मतलब है कि एक ऐसा कानून जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने भरण पोषण जैसे मुद्दों पर सभी धर्म से जुड़े लोगों पर समान रूप से लागू होगा। भारत में अभी एक समान आपराधिक कानून हैं। लेकिन नागरिक कानून यानी सिविल लॉ अलग अलग धार्मिक समुदायों के लिए अलग अलग हैं।

