‘कोयलिया फाग सुनावे…..’

‘ कोयलिया फाग सुनावे…..’
थिरक रहे आकाश में बादल किरणों-संग,
धरती फूलों से पटी हवा बजे मृदंग
हुआ मतवाला मौसम।।
आमों पर बौरा गए गुच्छा -गुच्छा बौर
फागुन देहरी पर खड़ा सिर पर बांधे मौर
कोयलिया फाग सुनावे।।
सरसों को हल्दी चढ़ी गेहूं है तैयार
महुवे को तो हो गया इमली से ही प्यार
तार होली ने छेड़े।।
दादी कमसिन हो गयी बाबा हुए जवान
सराबोर आंगन हुआ,झूम उठे खलिहान
लगी चौपाल बमक बम।।
साली -सरहज-भाभियां, करतीं खूब ठिठोल
पाहुन आए गांव में घूंघट बोलें बोल
रंग डारें देवर जी।।
दही -बड़े-संग ठंढई का बढ़िया गठजोड़
क्या गुलाबजामुन करे मालपुए से होड़
मस्त है सबसे गुझिया।।
होली की झोली खुली रंगों की बौछार
दिल से दिल की दिल्लगी जुड़े तार से तार
एक सी रंगत सबकी।।
होली के हुड़दंग में,बूटी करे कमाल
घुली हवा में भांग -सी तन- मन हुए गुलाल
लाल आलम है सारा।।
गौना लेने को चले, भोले गौरा-द्वार
ढोलक -शंख-मृदंग की गूंज रही झनकार
पालकी लाए नंदी।।
गण-भूतादिक संग हैं, बजे घंट-घड़ियाल
भस्म उड़े, डमरू बजे, काशी के कोतवाल
मसाने खेलें होली।।
डॉ.एस.बाला


