प्रशासन के दबाव में मुहं ढक कर मां गौरी संग काशी भ्रमण पर निकले बाबा विश्वनाथ, टूट गयी ३५० साल पुरानी परंपरा

वाराणसी, जनमुख न्यूज। बाबा काशी विश्वनाथ धाम में अब प्रशासन की मर्जी के बिना कोई भी रस्म और परंपरा नहीं निभाई जा सकती। पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी प्रशासन द्वारा रंग भरी एकादशी पर निकलने वाली बाबा विश्वनाथ की की पालकी यात्रा पर प्रशासन की नजरें पहले से टेढ़ी थी। एक दिन पूर्व ही काशी विश्वनाथ के पूर्व महंत परिवार को नोटिस देकर पालकी यात्रा न निकालने की हिदायत दी गयी थी। ३५० साल से चली आ रही परंपरानुसार टेढ़ी नीम स्थित पूर्व महंत आवास पर माता पार्वती के गौना की रस्में की रस्मे पूरी होने के बाद बाबा विश्वनाथ माता पार्वती के साथ काशी भ्रमण पर निकलते हैं। इस दौरान मां गौरी और बाबा विश्वनाथ की पंचबदन प्रतिमा विश्वनाथ मंदिर तक जाती है। लेकिन इस बार प्रशासन ने इसे रोकने के लिए काफी प्रयास किए महंत परिवार को पहले ही नोटिस पकड़ दी थी। लेकिन रविवार को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष द्वारा काशी परंपरा को नष्ट करने के आरोपों के बाद दबाव में आए प्रशासन द्वारा सोमवार की आनन-फानन में पालकी यात्रा की औपचारिकता पूरी करायीं गयी। आम तौर पर दोपहर तीन बजे हजारों की भीड़ के साथ निकलने वाली इस यात्रा को सुबह ही संपन्न करा दिया गया। इस दौरान मां गौरी और बाबा विश्वनाथ की रजत प्रतिमा को चादर ढक भी दिया गया था। सुबह गौने की रस्म पूरी होने के बाद भोलेनाथ के साथ माता पार्वती पालकी में सवार होकर विदा हुर्इं। महादेव और पार्वती की चल प्रतिमा मंदिर के लिए रवाना हुई।
रजत प्रतिमा पालकी में स्थापित कर मंदिर भेजा गया। प्रतिमा को एक कपड़े से ढका गया था और भारी संख्या में पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में टेढ़ी नीम स्थित पूर्व महंत आवास से प्रतिमा मंदिर के लिए रवाना की गई। शंकराचार्य चौक पर लोकाचार संपन्न कराने के बाद प्रतिमा की आरती की गयी। मान्यतानुसार इस पूजा के बाद ही काशीवासी बाबा की अनुमति लेकर होली की शुरुआत करते हैं।
परंपरा टूटने पर लोगों में आक्रोश
पहली बार पंचबदन प्रतिमा को ढक कर मंदिर के लिए रवाना किए जाने को लेकर काशी के लोगों में काफी आक्रोश देखा गया। लोगों का कहना है कि धूमधाम से भारी संख्या में लोगों की मौजूदगी के साथ निभाई जाने वाली परंपरा आज टूट गई।

