एकता का प्रतीक पर्व- झूलेलाल जयंती

भगवान झूलेलाल जयंती पर विशेष

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सिंध में मोहम्मद बिन कासिम ने अंतिम हिन्दू राजा दाहिर को विश्वासघास कर हरा दिया जिसके बाद सिंध को अल-हिलाज के खलीफा द्वारा अपने राज्य में शामिल कर लिया गया। इसके बाद खलीफा के प्रतिनिधियों द्वारा सिंध में शासन-प्रशासन चलाया गया। इस्लामिक आक्रमणकारियों ने पूरे क्षेत्र में तलवार की नोंक पर लगातार धर्मांतरण किया और इस्लाम को पैâलाया। इसके बाद, १०वीं शताब्दी में सिंध स्योमरा राजवंश के शासन में आया। सिंध क्षेत्र में इस्लाम में मतांतरित होने वाले स्थानीय लोगों में यह सबसे पहले थे। इनकी पूरी जाति इस्लाम में मतांतरित हो चुकी थी। ये समुदाय ना ज्यादा धार्मिक था ना ही ज्यादा कट्टरपंथी। इस्लाम के आक्रमण के बाद यही दौर अपवाद रहा जिसने कट्टरपंथ और तलवार की नोंक पर इस्लाम को पैâलाने पर जोर नहीं दिया। इसके बाद मिरखशाह ने हिंदुओं के ‘‘पंच प्रतिनिधियों’’ को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि ‘‘इस्लाम को गले लगाओ या मरने की तैयारी करो।’’ मिरखशाह की धमकी से डरे हिन्दुओं ने इस पर विचार करने को कुछ समय मांगा जिस पर मिरखशाह ने उन्हें ४० दिन का समय दिया। यह सर्वविदित है कि जब मनुष्य के लिए सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो वह ईश्वर के बारे में सोचता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। भगवान श्रीकृष्ण के भगवत्गीता के उद्बोधन का उल्लेख करते हुए तत्कालीन ग्राम प्रमुख ने कहा कि ‘‘जब-जब पाप सीमा लांघती है और धर्म पर खतरा बढ़ता है तब-तब ईश्वर अवतार लेते हैं। ‘‘अपने सामने मौत और धर्म पर संकट को देखते हुए सिंधी हिंदुओं ने नदी (जल) के देवता वरूण देव की ओर रूख किया। चालीस दिनों तक हिन्दुओं ने तपस्या की। ४०वें दिन स्वर्ग से एक आवाज आई, ‘‘डरो मत, मैं तुम्हें उसकी बुरी नजर से बचाउँगा। मैं एक नश्वर के रूप में नीचे आऊंगा, नसरपुर के रतनचंद लोहानो के घर माता देवकी के गर्भ में जन्म लूंगा।’ इसके बाद से सिंधी समाज इस ४०वें दिन को आज भी ‘‘धन्यवाद दिवस’’ के रूप में उत्सव मनाते हैं। ३ महीने के बाद आसू माह (आषाढ़) के दूसरे तिथि में माता देवकी ने गर्भ में शिशु होने की पुष्टि की। इसके बाद पूरे हिन्दू समाज ने जल देवता का प्रार्थना कर अभिवादन किया। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन आकाश से बेमौसम मूसलाधार बारिश हुई और माता देवकी ने एक चमत्कारी शिशु को जन्म दिया। भगवान झूलेलाल के जन्म लेते ही उनके मुख को खोला गया जिसमें सिंधु नदी के बहने का दृश्य था। पूरे हिन्दू समुदाय ने बच्चे के जन्म लेते ही गीतों और नृत्यों के साथ उसका स्वागत किया।
झूलेलाल जी का नामकरणः झूलेलाल जी का नाम बचपन में उदयचंद रखा गया। उदयचंद को उडेरोलाल भी कहा जाने लगा। नसरपुर के लोगों ने प्यार से बच्चे को अमरलाल कहने लगे। जिस पालने में वह रहते थे वह अपने आप झूलने लगता था, जिसके बाद ही उन्हें झूलेलाल कहा जाने लगा और वह इसी नाम से लोकप्रिय हुए।
मिरखशाह के मंत्री और भगवान झूलेलालः रहस्यमय और चमत्कारी बच्चे के जन्म की बात सुनकर मिरखशाह ने पंचों को अपने दरबार में बुलाया और उनके सामने दोबारा अपने फरमान को सुनाया। लेकिन इस बार सिंधी हिन्दू समुदाय पूरी तरह आश्वस्त थे कि उनका उद्दारक अब आ चुका है। मिरखशाह को जब जलदेवता के झूलेलाल जी के रूप जन्म लेने की बात पता चली तो उसने सबके सामने उसका जमकर मजाक उड़ाया। मिरखशाह ने कहा ‘ना तो मैं मरने जा रहा हूँ और ना ही तुम लोग यह जमीन जिंदा छोड़ने जा रहे हो। मैं तुम्हारे उस उद्धारक से ही इस्लाम कबूल करवाऊंगा और उसके बाद तुम लोग भी यहीं करोगे।’ इन सब के बीच, बालक उडेरोलाल (भगवान झूलेलाल) चमत्कार कर रहा था। नसरपुर के लोग पूर्णतः आश्वस्त थे कि उन्हें बचाने साक्षात ईश्वर ने जन्म लिया है। उडेरोलाल ने गोरखनाथ से ‘‘अलख निरंजन’’ का गुरू मंत्र भी प्राप्त किया। उडेरोलाल की सौतेली माँ उन्हें फल देकर बेचने भेजती थी। उडेरोलाल बाजार जाने के बजाय सिंधु तट पर जाकर उन्हें बुजुर्गो, बच्चों, भिक्षा मागने वालों और गरीबों को दे देते थे। वहीं उसी खाली बक्से को लेकर वह सिन्धु में डुबकी लगाते और जब निकलते तो वह बक्सा उन्नत किस्म के चावल से भरा होता जिसे ले जाकर वह अपनी माँ को दे देते। रोज-रोज उन्नत किस्म के चॉवल को देखकर एक दिन उनकी मां ने उनके पिता को भी साथ भेजा। जब रतनचंद ने छुपकर उडेरोलाल (भगवान झूलेलाल) का यह चमत्कार देखा तो उन्होंने झुककर उन्हें प्रणाम किया और उन्हें साक्षात ईश्वर के रूप में स्वीकार किया।
मिरखशाह और भगवान झूलेलालः दूसरी तरफ मिरखशाह के ऊपर मौलवियों द्वारा लगातार हिंदुओं को इस्लाम में लाने का दबाव डाला जा रहा था। उन्होंने उसे अल्टीमेटम दिया। ‘काफिरों को इस्लाम में बदलने का आदेश दिया।’’ मौलवियों की बात और अपने इस्लामिक अहंकार में मिरखशाह ने उडेरोलाल से खुद मिलने का पैâसला किया। उसने अहिरियो को मिलने की व्यवस्था करने को कहा। अहिरियो, जो इस बीच में जलदेवता का भक्त बन गया था, सिंधु के तट पर गया और जल देवता से अपने बचाव में आने की विनती की। अहिरियों ने एक बूढ़े आदमी को देखा, जिसमें एक सफेद दाढ़ी थी, जो एक मछली पर तैर रहा था। अहिरियो का सिर आराधना में झुका और उन्होंने समझा कि जल देवता उडेरोलाल एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक झंडा लिए हुए निकल गए। मिरखशाह जब उडेरोलाल जी के सामने आया तो उन्हें भगवान झूलेलाल (उडेरोलाल) ने ईश्वर का मतलब समझाया। लेकिन कट्टरपंथी मौलवियों की बातें और इस्लामिक कट्टरपंथ लिए बैठा मिरखशाह उन सभी बातों को अनदेखा कर अपने सैनिकों को झूलेलाल जी गिरफ्तार करने का आदेश देता है। जैसे ही सैनिक आगे बढ़े वैसे ही पानी की बड़ी-बड़ी लहरें आंगन को चीरती हुई आगे आ गई। आग ने पूरे महल को घेर लिया और सब कुछ जलना शुरू हो गया। सभी भागने के मार्ग बंद हो गए। भगवान झूलेलाल ने फिर कहा कि ‘‘मिरखशाह इसे खत्म करो! आखिर तुम्हारे और मेरे भगवान एक हैं तो फिर मेरे लोगों को तुमने क्यों परेशान किया?’’ मिरखशाह घबरा गया और उसने झूलेलाल जी से विनती की, ‘‘मेरे भगवान, मुझे अपनी मूर्खता का एहसास है। कृपया मुझे और मेरे दरबारियों को बचा लो।’’ इसके बाद सारी जगह पानी की बौछार आई और आग बुझ गई। मिरखशाह ने सम्मानपूर्वक नमन किया और हिंदुओं और मुसलमानों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए सहमत हुआ। भगवान झूलेलाल ने अपने चमत्कारिक जन्म और जीवन से ना सिर्फ सिंधी हिंदुओं के जान की रक्षा की बल्कि हिन्दू धर्म को भी बचाये रखा।
मिरखशाह जैस्े ना जाने कितने इस्लामिक कट्टरपंथी आये और धर्मांतरण का खूनी खेल खेला लेकिन भगवान झूलेलाल की वजह से सिंध में एक दौर में यह नहीं हो पाया। भगवान झूलेलाल आज भी सिंधी समाज के एकजुटता ताकत और सांस्कृतिक गतिविधियों के वंâेद्र हैं।
भगवान झेलूलाल ने अपने भक्तों से कहा कि मेरा वास्तविक रूप जल एवं ज्योति ही है। इसके बिना संसार जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने समभाव से सभी को गले लगाया तथा साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देते हुए दरियाही पंथ की स्थापना की।
सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का था। सिंधी समुदाय चेटीचंड पर्व से ही नववर्ष प्रारंभ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं। इस दिन सूखोसेसा प्रसाद वितरित करते हैं। चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरूष तालाब या नदी के किनारे दीपक जलाकर जल देवता की पूजा- अर्चना करते हैं।

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-रमेश लालवानी

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