सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सियासी घमासान, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने दी तीखी प्रतिक्रिया, कांग्रेस ने बताया अपमानजनक

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज़। राष्ट्रपति को विधेयकों पर तय समय में निर्णय लेने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद देश की सियासत गर्मा गई है। इस मुद्दे पर जहां विपक्ष कोर्ट के फैसले की सराहना कर रहा है, वहीं सत्ताधारी दल के कुछ सांसदों ने न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर तीखा हमला बोला। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, “अगर कोर्ट ही कानून बनाएगा, तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है और देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति के लिए जिम्मेदार है।”
दुबे ने कहा कि राष्ट्रपति भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर हैं, और उन्हें निर्देश देना न्यायपालिका की सीमा से बाहर की बात है। उन्होंने सवाल किया, “आपने किस कानून के तहत यह तय किया कि राष्ट्रपति को तीन महीने में फैसला देना होगा?”
भाजपा सांसद के इस बयान पर कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थान का अपमान बताते हुए कहा कि दुबे बार-बार लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। टैगोर ने उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट उनके बयान पर संज्ञान लेगा और कहा कि इस तरह की टिप्पणियों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
इससे पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चिंता जता चुके हैं। उन्होंने कहा था कि यह लोकतंत्र के मूल स्वरूप के खिलाफ है कि न्यायपालिका कानून बनाए और कार्यपालिका की भूमिका निभाए। उन्होंने इस आदेश को ‘सुपर संसद’ जैसी स्थिति करार देते हुए कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है जब राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने को कहा गया है।
धनखड़ ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति संविधान के संरक्षक होते हैं और उन्हें निर्देश देना संविधान की भावना के खिलाफ है। उन्होंने अनुच्छेद 145(3) का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान की व्याख्या केवल पांच या उससे अधिक जजों की पीठ ही कर सकती है।

