माता लक्ष्मी को लगाएं ये भोग, कभी समाप्त नहीं होगा पुण्य

अक्षय तृतीया त्रेतायुग की शुरुआत का भी प्रतीक है। इस दिन किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत बिना मुहूर्त के की जा सकती है, इसलिए इसे ‘अबूझ मुहूर्त’ कहा गया है। मान्यता है कि इस दिन किए गए धर्म, दान और भक्ति का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। इस पावन अवसर पर विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान उन्हें प्रिय भोग अर्पित करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह दिन पूजा, उपवास, जप-तप, दान-पुण्य और धार्मिक कार्यों के लिए सर्वोत्तम माना गया है। विशेष रूप से माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भक्ति और भोग का विशेष महत्व है।
लक्ष्मी को अर्पित किए जाने वाले भोग
१. पंचामृत- पंचामृत का अर्थ होता है पांच अमृत समान वस्तुएं—दूध, दही, घी, शहद और शक्कर। इसे मिलाकर देवी-देवताओं का अभिषेक और भोग दोनों में उपयोग किया जाता है। माता लक्ष्मी को पंचामृत अत्यंत प्रिय है. ये शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है, जो देवी को अर्पित कर उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है।
२. पंजीरी- पंजीरी मुख्य रूप से गेहूं के आटे, सूखे मेवों, घी और शक्कर से तैयार की जाती है. इसे शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। देवी लक्ष्मी को अर्पित करने पर वो प्रसन्न होती हैं और घर में अन्न-धन की वृद्धि होती है। इसे खासतौर पर उत्तर भारत में विशेष रूप से अक्षय तृतीया पर बनाया जाता है।
३. सूजी या बेसन का हलवा- हलवा एक पारंपरिक मिठाई है जो हर शुभ अवसर पर बनाई जाती है. ये स्वाद में जितना अच्छा होता है, उतना ही इसका धार्मिक महत्त्व भी है। इसे माता लक्ष्मी को अर्पित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-शांति का वास होता है।
४. चावल की खीर- खीर को वैदिक काल से ही शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। दूध, चावल और शक्कर से बनी यह मिठाई देवी लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है। कुछ स्थानों पर इसे केसर, काजू, किशमिश आदि डालकर और भी स्वादिष्ट बनाया जाता है। इसे अर्पित करने से आर्थिक स्थिति में मजबूती और सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है।

