“सुप्रीम कोर्ट की यूपी पुलिस पर सख्त टिप्पणी: जांच एजेंसियों का काम निष्पक्ष जांच, दोष तय करना अदालत का कार्य”

नई दिल्ली,जनमुख न्यूज़। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए जांच एजेंसियों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए। अदालत ने स्पष्ट कहा कि जांच एजेंसियों का कार्य पूरी तरह निष्पक्ष जांच करना है, जबकि किसी आरोपी के दोषी या निर्दोष होने का निर्धारण केवल अदालत कर सकती है।
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में इलाहाबाद में दर्ज एक प्राथमिकी के आधार पर शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए दी। इस मामले में विनोद बिहारी लाल नामक व्यक्ति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अप्रैल 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट और मुकदमे को खारिज करने की याचिका खारिज कर दी थी।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन अधिकारियों को नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा का दायित्व सौंपा गया है, वे इतनी लापरवाही बरत रहे हैं। पीठ ने यहां तक कहा कि यह स्थिति ऐसी है जैसे लोमड़ी को मुर्गी की रखवाली सौंप दी गई हो।
अदालत ने जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत आरोपपत्र की आलोचना करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से एफआईआर की बातों को ही दोहराता है और उसमें कोई स्वतंत्र जांच का प्रमाण नहीं है। पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि जांच अधिकारी किस आधार पर यह दावा कर सकते हैं कि गैंगस्टर एक्ट की धारा 2 और 3 के अंतर्गत अपराध सिद्ध हो गए हैं।
पीठ ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य हैं, और ऐसे में अपीलकर्ता को मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। अदालत ने इसे न्याय की विफलता बताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में हस्तक्षेप जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) नियम, 2021 के नियम 17 का हवाला देते हुए कहा कि गैंग-चार्ट तैयार करते समय सक्षम प्राधिकारी को स्वतंत्र रूप से विचार करना चाहिए, और पूर्व-मुद्रित गैंग-चार्ट का उपयोग प्रतिबंधित है, जिससे हस्ताक्षर केवल औपचारिकता न बन जाएं।

