लखनऊ में कांग्रेस का सामाजिक सम्मेलन

नई दिल्ली,जनमुख न्यूज। लखनऊ मौजूदा कांग्रेस का विवादों और विवादित व्यक्तियों से नाता कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस के नेताओं के प्रत्येक कदम में समाज को तोड़ने की बू आती है। खासकर सनातन धर्म मानने वालों के साथ तो कांग्रेस का व्यवहार दोयम दर्जे का रहता है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तो हिन्दुओं को आतंवादी तक बताने से नहीं चुकते हैं। इसी के चलते कांर्ग्रेस का समाज को जोड़ने का कोई भी उपक्रम या सम्मेलन सफल नहीं होता है। क्योंकि उसमें वह ऐसी कुछ शख्सियतों को आमंत्रित कर ही लेती है जो सनातन के खिलाफ जहर उगलने में माहिर हैं। इसी लिये तो उत्तर प्रदेश की जमीं पर जब कांग्रेस ने अपनी संविधान बचाने और सामाजिक न्याय को लेकर चलाई जा रही मुहिम को आगे बढ़ाने का फैसला लिया तो यह सम्मेलन भी शुरू होने से पहले विवादों में घिर गया। दरअसल, कांग्रेस ने २९ सितंबर को लखनऊ में सामाजिक न्याय सम्मेलन करने का निर्णय लिया है, लेकिन विवाद का विषय यह है कि कांग्रेस को इस सम्मेनल के लिये तमिलनाडु के मंत्री उदय निधि स्टालिन से बेहतर कोई व्यक्ति नजर नहीं आया और उसने उन्हें बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया है। यह सम्मेलन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मंडल आयोग के अध्यक्ष बीपी मंडल की जयंती पर हो रहा है।बता दें उदयनिधि स्टालिन अपने तमाम विवादित बयानों के माध्यम से सनातन धर्म को जड़ से खत्म करने की बात करते रहे हैं। उन्होंने यहां तक कहा था कि कुछ चीजों का सिर्फ विरोध नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें जड़ से खत्म किया जाना चाहिए। हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोनावायरस का विरोध नहीं कर सकते। हमें इसे खत्म करना होगा। इसी तरह हमें सनातन को खत्म करना है। सनातन धर्म को लेकर उदयनिधि की टिप्पणियों पर पूरे देश में बड़ा बवाल मचा था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भाजपा ने उनके बयान की तीखी आलोचना की। उदयनिधि के इस बयान के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ नेताओं ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा था कि सनातन धर्म दर्शन से जुड़ा पहलू है।ये भारतीय सभ्यता के मूल्यों से जुड़ी शाश्वत जीवनशैली है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं का कहना है कि सनातन धर्म शाश्वत है और चिरकाल से चला आ रहा है। जिसे हिंदू धर्म कहा जाता है वह इसका एक रूप है, जो लोग इसे ब्राह्मणवाद से जोड़ रहे हैं उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं है। संघ से जुड़े एक नेता ने कहा कि ब्राह्रणवादष् भी अपने आप में एक काल्पनिक अवधारणा है। जो लोग इसे ब्राह्मणवाद से जोड़ कर देख रहे हैं वो अपनी अज्ञानता और स्वार्थ में ऐसा कर रहे हैं। संघ नेताओं का कहना था कि भारत में जन्म लेने वाले धर्मों और और उनकी पंरपराएं लोगों के बीच समानता और सह.अस्तित्व की बात करती है जबकि बाहर से आने वाले धर्म भेदभाव और अलगाव की बात करते हैं। वहीं बीजेपी की आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने उदयनिधि स्टालिन के बयान की तुलना यहूदियों के बारे में हिटलर के विचारों से की थी।मामला मद्रास हाईकोर्ट तक पहुंचा था।इस पर मद्रास हाई कोर्ट ने स्टालिन को नसीहत देते हुए कहा था कि किसी भी व्यक्ति को विभाजनकारी विचारों को बढ़ावा देने या किसी विचारधारा को खत्म करने का अधिकार नहीं है, मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश जी जयचंद्रन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सत्ता में बैठे व्यक्ति को जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए और उन विचारों को प्रचारित करने से खुद को रोकना चाहिए, जो विचारधारा, जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटने का काम करते हैं। इसके बजाय, वे नशीले पेय पदार्थों और ड्रग्स की समस्या के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जो स्वास्थ्य जोखिमों, भ्रष्टाचार, अस्पृश्यता और अन्य सामाजिक बुराइयों को जन्म देते हैं। इस पर उदय ने गलती मानने के बजाये अपनी टिप्पणियों का बचाव किया और कहा कि मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। मैं अपने बयान के संबंध में कानूनी परिणाम भुगतने के लिए तैयार हूं। मैंने जो कहा वह सही था और मैं इसका कानूनी तौर पर सामना करूंगा। मैं अपना बयान नहीं बदलूंगा। मैंने अपनी विचारधारा की बात कही है। मैंने अंबेडकर, पेरियार या थिरुमावलवन ने जो कहा था, उससे अधिक नहीं बोला है। मैं विधायक, मंत्री या यूथ विंग का सचिव हो सकता हूं और कल शायद इनमें से कुछ भी नहीं रह सकता हूं। लेकिन इंसान होना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

