चंद्रचूड़ के बाद किसके हाथों में होगी एससी की कमान

नई दिल्ली,जनमुख न्यूज । भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) चंद्रचूड़ जल्द ही अपने पद से हटने वाले है। इससे पहले डीवाई चंद्रचूड़ ने औपचारिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तावित किया है। केंद्र सरकार को भेजे पत्र में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि वह १० नवंबर को अपना पद छोड़ रहे हैं। ऐसे में न्यायमूर्ति खन्ना उनके उत्तराधिकारी होंगे।सरकार की मंजूरी मिलने पर जस्टिस खन्ना भारत के ५१वें मुख्य न्यायाधीश बन जाएंगे। उनका कार्यकाल छह महीने का होगा, जो १३ मई, २०२५ को समाप्त होगा और उसके बाद उनकी सेवानिवृत्ति होगी। यह पत्र परंपरा के अनुसार लिखा गया है, जिसमें भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को उत्तराधिकारी नामित करते हैं। इसके बाद केंद्र सरकार सिफारिश को मंजूरी देती है।न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ९ नवंबर, २०२२ को सीजेआई का पदभार संभाला। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ६५ वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं। १४ मई १९६० को जन्मे न्यायमूर्ति खन्ना ने १९८३ में दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में पंजीकरण कराया और शुरुआत में तीस हजारी परिसर स्थित जिला अदालतों में तथा बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरणों में वकालत की।वर्ष २००५ में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया तथा २००६ में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। न्यायमूर्ति खन्ना को १८ जनवरी, २०१९ को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जन्म ११ नवंबर १९५९, एक भारतीय न्यायविद हैं, जो नवंबर २०२२ से सेवारत भारत के ५०वें और वर्तमान मुख्य न्यायाधीश हैं।उन्हें मई २०१६ में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और इससे पहले उन्होंने २०१३ से २०१६ तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और २००० से २०१३ तक बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया। सीजेआई चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है और उन्होंने सुलिवन एंड क्रॉमवेल और बॉम्बे उच्च न्यायालय में वकील के रूप में प्रैक्टिस की है। वह चुनावी बांड योजना, राम जन्मभूमि, सबरीमाला, समलैंगिक विवाह और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने जैसे ऐतिहासिक फैसले सुनाने वाली पीठों का हिस्सा रहे हैं।

