नीतीश पर निगाहें, बिहार में पर्दे के पीछे चल रहा बड़ा खेल?

पटना, जनमुख न्यूज। विधानसभा चुनाव २०२५ से पहले बिहार में राजनीति गतिविधियां तेज हैं। तमाम तरह के कयाश और विशलेष्ण बडड़े खेल का इशारा कर रहे हैं। खासकर एनडीए खेमे में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या बीजेपी एक बार फिर से नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करेगी या नहीं। वहीं नीतीश कुमार एनडीए में बने रहेंगे या फिर पाला बदलेंगे।
पिछले कई दिनों की गतिविधियों को देखें तो नीतीश कुमार ने किसी भी तरह के राजनीतिक बयान से दूरी बना रखी है। वहीं राजद नीतीश को फिर से अपने साथ आंमत्रित कर रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति अब किसी भरोसेमंद पार्टी नेतृत्व का मोहताज होकर रह गई है।
भविष्य के आईने में नीतीश कुमार की राजनीतिक परेशानियां इसलिए भी बढ़ रही हैं क्योकि राजद की राजनीति में अब मुख्यमंत्री की कोई वैकेंसी नहीं है। तो वहीं भाजपा बिहार में अपना मुख्यमंत्री बैठाने का सपना देख रही है। बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर भाजपा नेता और डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जब कहा कि बिहार में अपना मुख्यमंत्री बैठाए बिना वाजपेयी जी का सपना साकार नहीं होगा। और हमारे अंदर की आग और ताप शांत नहीं होगा तो बिहार में एनडीए गठबंधन में लगी आग की लपटे और तेज हो गयी। डॉ अम्बेडकर पर गृहमंत्री के बयान के बाद से नीतीश कुमार ने काई टिपण्णी नहीं की है। आम तौर पर जब नीतीश कोई बड़ा पैâसला लेते हैं तो मीडिया से कुछ दिन की दूरी बना लेते हैं और चुप्पी साधे रहते हैं। नीतीश की चुप्पी ही बिहार की राजनीति में किसी बड़े उलटफेर का संकेत दे रही है। ा
यह बात तो नीतीश कुमार को भी पता है कि राष्ट्रीय जनता दल आगे की राजनीति में बतौर मुख्यमंत्री कोई वैकेंसी खाली नहीं है। जिस तरह से नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अगला सीएम बनाने की सार्वजनिक घोषणा घोषणा की और फिर एनडीए के साथ गलबहिया कर ली, उसके बाद से नीतीश कुमार की विश्वसनीय लालू प्रसाद की नजर में कम हो गई। थोड़ी बहुत जो कसर बची थी वह इंडिया गठबंधन को बीच मझधार ने छोड़ने के कारण वह भी चली गई।
वैसे नीतीश को मालूम है कि वही राजद की तरफ अगर मुड़ भी जाते हैं तो सीएम की कुर्सी तो नहीं ही मिलेंगी। लेकिन उनका चेहरा एक बार फिर अविश्वसनीय हो जायेगा। लेकिन भाजपा भी जिस तरह अपने मुख्यमंत्री के लिए रास्ता तलाश रही है वह भी स्थिति नीतीश के लिए मुफीद नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार चुनाव के पहले अकेले चुनाव मैदान में जाने की रणनीति पर भी विचार कर सकते हैं। वैसे जिस प्रकार नीतीश के करीबी लोगों पर भाजपा की पकड़ है नीतीश के लिए कोई भी पैâसला लेना आसान नहीं होने जा रहा। लेकिन एनडीए में खींचतान बढ़ी है और इसका असर आने वाले दिनों में और भी देखने को मिलेगा। लेकिन चुनाव के करीब आने तक नीतीश कोई बड़ा कदम उठाएंगे ऐसा संभव नहीं नजर आ रहा। इसलिए बिहार की राजनीति में पर्दे के पीछे का खेल अभी कुछ दिन और जारी रह सकता है। सभी की निगाहें बस नीतीश के अगले कदम पर टिकी हैं।

