सामूहिक हत्याकांड में फांसी की सजा पाया आरोपी सबूतों के अभाव में सुप्रीम कोर्ट से बरी

लखनऊ, जनमुख न्यूज। आगरा जिले के अछनेरा के तुरकिया गांव में हुए सामूहिक हत्याकांड में फांसी की सजा पाए गंभीर सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। इसके बाद वह बुधवार की सुबह आगरा सेंट्रल जेल से रिहा हो गया। जेल से बाहर आते ही उन्होंने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि उन्हें भगवान पर भरोसा था। इसके साथ ही उन्होंने अपनी जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग भी की है।
बताया जाता है कि ९ मई २०१२ को आगरा के तुरकिया गांव में एक ही परिवार के ६ लोगों की हत्या कर दी गई थी। जिसमें पुलिस ने गंभीर सिंह पर आरोप लगाया था कि उसने अपने बड़े भाई सत्यभान, भाभी पुष्पा और उनके चार बच्चों-आरती, महरा, गुड़िया और कन्हैया समेत कुल ६ लोगों की हत्या की है। पुलिस के अनुसार परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद था। इस विवाद के कारण उसने अपने परिवार के ६ लोगों की हत्या कर दी थी। पुष्पा का भाई, जो हत्याकांड के बाद सबसे पहले पुलिस के सामने आया था, उसने गंभीर सिंह को शक के तौर पर नाम लिया था। पुलिस ने इस बयान को आधार मानते हुए गंभीर सिंह और उसकी कजिन गायत्री को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद पुलिस ने दो हथियार भी बरामद किए थे, जिनमें एक कुल्हाड़ी और दूसरा ड्रैगर (कटारी) था।
पुलिस के सबूतों के आधार पर आगरा की सेशन कोर्ट ने गंभीर सिंह को मौत की सजा सुनाई, लेकिन उसने खुद को निर्दोष बताया। इस फैसले के बाद गंभीर सिंह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन हाई कोर्ट ने भी सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद गंभीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां करीब ६ साल की सुनवाई के बाद, २८ जनवरी २०२५ को सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सिंह को बरी करने के लिए ४ मुख्य कारण बताए। जिसके अनुसार कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने जो कहानी बताई थी, उसके मुताबिक गंभीर सिंह ने जमीन के विवाद के कारण हत्या की थी, लेकिन इस कहानी के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए गए। पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि जमीन को लेकर गंभीर सिंह और उसके बड़े भाई के बीच कोई विवाद था। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने किसी ऐसे गवाह को पेश नहीं किया जो यह साबित कर सके कि गंभीर सिंह हत्याकांड के समय मौके पर मौजूद था। इसके अलावा पुलिस ने यह भी नहीं बताया कि गंभीर सिंह को गिरफ्तार करने के समय वह खून से सने कपड़े पहने हुआ था, लेकिन यह जानकारी संदेहास्पद थी क्योंकि पुलिस ने इस कपड़े को १० किलोमीटर तक पहने हुए घूमते हुए दिखाया था, जो कि असंभव था। कोर्ट ने हथियारों की जांच पर भी उठाया सवाल और कहा कि पुलिस ने दो हथियार बरामद किए थे, लेकिन इन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए भेजने से पहले इन्हें सील नहीं किया गया था। इसके बाद जो रिपोर्ट आई, उसमें केवल खून के निशान मिले थे, लेकिन ब्लड ग्रुप का पता नहीं चल पाया। यह स्थिति भी गंभीर सिंह की सजा को और संदेहास्पद बनाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किए गए सबूतों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इन सबूतों को ठीक से संरक्षित नहीं किया गया था और निचली अदालतों ने भी इन सबूतों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया।
गंभीर सिंह की रिहाई के बाद सबसे सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि अगर वह निर्दोष है, तो फिर यह छह हत्याएं किसने की? क्या आगरा पुलिस इस मामले की दोबारा जांच करेगी? अभी तक इस पर पुलिस की ओर से कोई बयान नहीं आया है। लेकिन पुलिस जांच में लापरवाही स्पष्ट रुप से सामने आ गयी है।

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