काशी तमिल संगमम ३ के सांस्कृतिक संध्या में बांसुरी वादन और पारंपरिक नृत्यों की अद्भुत प्रस्तुति

वाराणसी, जनमुख न्यूज। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक भारत, श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार कर रहे काशी तमिल संगमम के आयोजन को विशिष्ट अतिथियों के आगमन से अपार सफलता मिल रही है। तमिलनाडु से आए डेलिगेट जहां इस आयोजन को लेकर प्रफुल्लित नजर आ रहे हैं वहीं काशी के लोगों के अपार स्नेह से प्रसन्नचित भी हैं। रविवार को नमो घाट पर आयोजित सांस्कृतिक संध्या में कलाकारों की प्रस्तुति ने जहां सबका मन मोहा वहीं विशिष्ट अतिथियों और तमिलनाडु से आए डेलिगेट के उत्साह ने इस कार्यक्रम को और भी रोचक बना दिया।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के तत्वाधान में आयोजित ‘काशी तमिल संगमम ३’ का भव्य आयोजन १५ से २४ फरवरी के मध्य वाराणसी में किया जा रहा है। इस महोत्सव के अंतर्गत प्रत्येक संध्या को नमो घाट स्थित मुक्त आकाश मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें उत्तर और दक्षिण भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं का संगम देखने को मिल रहा है। इसी श्रृंखला में, आकाशवाणी और दूरदर्शन वाराणसी के उप निदेशक श्री राजेश कुमार गौतम की प्रस्तुति ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। सांस्कृतिक संध्या के तहत राजेश कुमार गौतम के बांसुरी वादन ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने ‘जमुना तट श्याम खेले होली’ की धुन बजाकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। उनके साथ तबला पर डॉ. रजनीश तिवारी, हारमोनियम पर काजोल वाल्मीकि एवं अन्य वाद्य यंत्रों पर प्रकाश गौतम ने संगत कर प्रस्तुति को और अधिक प्रभावशाली बनाया। हर दिन हो रहे इस आयोजन में कलाकारों की प्रस्तुति को श्रोता और दर्शक पूरा आनंद ले रहे हैं।
रविवार को नागालैंड के राज्यपाल महामहिम श्री एल. गणेशन ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अपने उद्बोधन में उन्होंने काशी तमिल संगमम को भारत को एकजुट करने का एक प्रभावी माध्यम बताया और कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें इस पुण्यभूमि वाराणसी आने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि काशी-तमिल संगमम गंगा और कावेरी के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को इस अद्भुत आयोजन को मूर्त रूप देने के लिए धन्यवाद दिया। इसके बाद तमिलनाडु की पारंपरिक नृत्य प्रस्तुतियाँ हुर्इं, जिनमें थप्पत्तम, कुम्मी, कोलाट्टम, अम्मानट्टम एवं ग्रामिया कलाई अट्टम प्रमुख रहे। थप्पत्तम नृत्य में कलाकार विशेष प्रकार के ड्रम (थप्पू) का प्रयोग करते हैं, जिसे मुख्य रूप से तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में उत्सवों और सामाजिक आयोजनों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। कुम्मी नृत्य में महिलाएँ एक सर्कल में ताल मिलाकर ताली बजाते हुए गीत गाती हैं, जिससे यह नृत्य सामूहिकता और हर्षोल्लास का प्रतीक बनता है। कोलाट्टम, जिसे ‘लाठी नृत्य’ भी कहा जाता है, में नर्तक अपने हाथों में छोटी-छोटी लकड़ियाँ लेकर उन्हें एक-दूसरे से टकराते हुए नृत्य करते हैं, जिससे यह नृत्य टीम भावना और समन्वय का प्रतीक बन जाता है। अम्मानट्टम नृत्य देवी शक्ति की आराधना में किया जाता है, जिसमें नृत्यांगनाएँ भक्ति भाव से देवी की स्तुति करती हैं, वहीं ग्रामिया कलाई अट्टम तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाने वाला लोक नृत्य है, जो वहाँ की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली को प्रदर्शित करता है।
इन रंगारंग प्रस्तुतियों ने वाराणसी और तमिल संस्कृति के अद्वितीय मेल का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। काशी तमिल संगमम ३ के तहत आयोजित इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दोनों राज्यों की सांस्कृतिक समृद्धि को देखा जा सकता है, जिससे यह आयोजन भारत की विविधता में एकता का अद्भुत प्रतीक बन गया है।

