संविधान, इतिहास और राजनीति: लोकसभा में वंदे मातरम बहस पर प्रियंका गांधी का तीखा हमला

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज़। केरल की वायनाड सीट से लोकसभा पहुंचीं कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोमवार को वंदे मातरम पर हो रही बहस में हिस्सा लेते हुए सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत के आज़ादी आंदोलन की नैतिक शक्ति और प्रेरणा का प्रतीक है। प्रियंका ने आरोप लगाया कि यह चर्चा अचानक इसलिए छेड़ी गई है क्योंकि आने वाले समय में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं।
उन्होंने संसद में कहा कि वंदे मातरम ने कभी ब्रिटिश साम्राज्य को भी झुकने पर मजबूर किया था। इस गीत का नाम लेते ही स्वतंत्रता संग्राम का साहस और संघर्ष याद आ जाता है। प्रियंका गांधी ने बताया कि 1930 के दशक में जब सांप्रदायिक राजनीति उभरने लगी, तब इस गीत को विवादित बनाया गया।
उन्होंने लोकसभा में 1937 की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि कोलकाता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 20 अक्तूबर को वंदे मातरम का पाठ किया, लेकिन इससे पहले उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को चिट्ठी लिखी थी, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं किया। प्रियंका ने बताया कि नेहरू ने 20 अक्तूबर के जवाब में लिखा कि वे 25 अक्तूबर को टैगोर से मिलने कोलकाता पहुंचेंगे। इसके बाद 28 अक्तूबर को कांग्रेस कार्यसमिति ने वंदे मातरम को राष्ट्रगीत घोषित किया, और सभी महापुरुष इस प्रस्ताव से पूरी तरह सहमत थे।
प्रियंका गांधी के सवाल
प्रियंका गांधी ने संसद में पूछा—“150 वर्षों से देश की आत्मा में बसने वाले वंदे मातरम पर आज बहस की जरूरत क्यों?”
उन्होंने कहा कि 75 साल से यह गीत जनता के दिलों में समाया हुआ है और इसे विवाद बनाकर सत्ता पक्ष जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटका रहा है।
प्रधानमंत्री पर तीखा वार
बहस के दौरान प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेरा। उन्होंने कहा कि— “प्रधानमंत्री 12 साल से देश चला रहे हैं, और उतने ही साल पंडित नेहरू ने आज़ादी की लड़ाई में जेल में बिताए थे।”
साथ ही कहा कि संविधान सभा द्वारा स्वीकृत वंदे मातरम पर सवाल उठाना टैगोर, गांधी, मौलाना आज़ाद और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे महान नेताओं का अपमान है।
प्रियंका ने कहा कि हम देश के लिए हैं, आप चुनाव के लिए—और सत्ता पक्ष को यह समझना चाहिए कि जनता की समस्याएं बहस और प्राथमिकता की असली मांग करती हैं, न कि इतिहास को राजनीतिक हथियार बनाने की।

