ऊर्जा मंत्री और बिजली कर्मियों में टकराव तेज, निजीकरण विवाद पर आरोप-प्रत्यारोप—सीबीआई जांच की मांग

लखनऊ, जनमुख न्यूज़। उत्तर प्रदेश में ऊर्जा विभाग को लेकर माहौल गर्माता जा रहा है। ऊर्जा मंत्री एके शर्मा और विद्युत विभाग के कर्मचारियों के बीच विवाद लगातार गहराता जा रहा है। सोशल मीडिया से शुरू हुआ यह विवाद अब सड़कों से लेकर राजनीतिक मंचों तक पहुंच चुका है।

सोमवार को ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर बयान जारी कर आरोप लगाया कि कुछ विद्युत कर्मियों के वेश में अराजक तत्व उनकी “सुपारी” लिए घूम रहे हैं। मंत्री ने कहा कि ये लोग इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि वे उनके सामने झुकते नहीं हैं। उन्होंने इन कर्मचारियों पर विभाग को बदनाम करने का भी आरोप लगाया।

ऊर्जा मंत्री के समर्थन में विद्युत संविदा कर्मचारी महासंघ भी सामने आया और संघर्ष समिति पर राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगाया। वहीं, बिजली कर्मचारी संघर्ष समिति ने मंत्री के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आस्था जताई है। समिति ने निजीकरण प्रस्ताव को रद्द करने की मांग दोहराई और आरोप लगाया कि निजीकरण के नाम पर घोटाला हुआ है।

ऊर्जा मंत्री के सवाल और आरोप:

वर्ष 2010 में टोरेंट कंपनी के निजीकरण के दौरान कर्मचारी नेता चुप क्यों थे?

तब विरोध क्यों नहीं किया गया जब नेता विदेश यात्रा पर थे?

जब एक जूनियर इंजीनियर का ट्रांसफर भी ऊर्जा मंत्री नहीं कर सकते, तो निजीकरण का फैसला वे कैसे ले सकते हैं?

निजीकरण का निर्णय मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली टास्क फोर्स और राज्य सरकार की उच्चस्तरीय अनुमति से हुआ है।


कर्मचारियों का जवाब और मुख्यमंत्री से गुहार:
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने मंत्री के बयानों को “निराधार और भ्रामक” करार दिया और कहा कि बिजली कर्मी कभी भी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि विदेश यात्रा को निजीकरण से जोड़ना भ्रामक है।

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मामले में हस्तक्षेप और सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने निजीकरण की प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि इसे तैयार करने वाली सलाहकार कंपनी की नियुक्ति भी संदिग्ध तरीके से हुई है।

सियासी रंग भी गहराया:
बिजलीकर्मियों के मुख्यमंत्री में विश्वास जताने और ऊर्जा मंत्री के खिलाफ आक्रोश को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान यह मुद्दा और गरमा सकता है। फिलहाल, ऊर्जा विभाग का माहौल अस्थिर बना हुआ है और सबकी नजर मुख्यमंत्री के अगले कदम पर टिकी है।

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