हिंदी सागर हिंद का…

वर्ष पड़े उनचास का, चौदह की तारीख़,
माह सितम्बर में बनी हिंदी की वो लीक,
राजभाषा है अपनी ।।
विश्व -पटल पर हो रही, हिंदी की जयकार,
कथा, कहानी, नाट्य की खूब लगी भरमार,
हुई केसरिया हिंदी।।
देवनागरी है लिपि, उपभाषाएं पांच,
अनगिनती हैं बोलियां ग्रंथ रहे सब बांच,
ललित साहित्य हमारा ।।
खुसरो खुश हो ले चले, हिंदी अपने साथ,
बूझीं ख़ूब पहेलियां,छाप-तिलक की बात,
वर्ण हैं अक्षत कुमकुम।।
जनभाषा लेकर चले, तुलसी,सूर, कबीर,
चौपाई, दोहा,सबद, कवित, सवैया -तीर,
भरा गागर में सागर।।
भारतेंदु के भाल पर, लगा दिया जो चांद,
पड़ सकती जग में नहीं हिंदी अब तो मांद,
चमकती दुनिया सारी।।
भोजपुरी की चल पड़ी जबसे मस्त बयार,
‘ठाकुर ‘कहें ‘विदेसिया’ ‘कजरी’की झनकार,
झूमते चैती-बिरहा ।।
हिंदी सागर हिंद का ,उपबोली दरियाय,
पूरब-पच्छिम-दक्खिनी, उत्तर याहि समाय,
बड़ी मुंह बोली हिंदी।।


