हुमायूँ कबीर का बड़ा राजनीतिक दांव, रखी बाबरी मस्जिद की आधारशिला: जानिए भाजपा, कांग्रेस और टीएमसी तक कैसा रहा राजनीतिक सफर

कोलकाता, जनमुख न्यूज़। शनिवार 6 दिसम्बर को टीएमसी से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की बरसीं पर
मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद जैसे डिजाइन में मस्जिद निर्माण की आधारशिला रखी। जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। उनके इस फैसले ने पश्चिम बंगाल में जोरदार घमासान खड़ा कर दिया है। BJP ने आरोप लगाया है कि यह कदम लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने के लिए उठाया जा रहा है। वहीं TMC ने इसे बेबुनियाद करार दिया और दावा किया कि कबीर BJP के इशारे पर अशांति फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
हुमायूँ कबीर का राजनीतिक सफर
कांग्रेस से शुरुआत
हुमायूँ कबीर ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से की। शुरुआती दिनों में उन्होंने पार्टी के संगठनात्मक कामकाज में हिस्सा लिया और स्थानीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई।
टीएमसी में प्रवेश
2012 में हुमायूँ कबीर ने कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में शामिल हो गए। टीएमसी के टिकट पर उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और Rejinagar क्षेत्र से विधायक बने। हालांकि, 2015 में पार्टी से उन्हें निष्कासित कर दिया गया।
निर्दलीय और भाजपा का सफर
टीएमसी से निष्कासन के बाद हुमायूँ कबीर ने 2016 में निर्दलीय (Independent) के रूप में चुनाव लड़ा। इसके बाद 2018 में उन्होंने भाजपा में प्रवेश किया और 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार भी बने। भाजपा में रहते हुए उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाई।
टीएमसी में पुनः वापसी
2020 या 2021 में हुमायूँ कबीर ने पुनः टीएमसी में वापसी की और 2021 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया। इस दौरान वे विवादों के कारण पार्टी की अनुशासन संबंधी समस्याओं में भी रहे।
2025 में सस्पेंशन और नई पार्टी की तैयारी
4 दिसंबर 2025 को हुमायूँ कबीर को टीएमसी से सस्पेंड कर दिया गया। पार्टी ने उनके विवादित बयानों और असहमति के कारण यह कदम उठाया। इसके बाद हुमायूँ कबीर ने घोषणा की कि वे 22 दिसंबर 2025 को नई पार्टी बनाएंगे, जो उनके राजनीतिक सफर का नया अध्याय होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, हुमायूँ कबीर लगातार पार्टी बदलने और नई राजनीतिक पहलों में शामिल होने के कारण पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक “टर्नकोट नेता” के रूप में उभरे हैं। उनका ताजा रवैया आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान एक अलग बड़े मुस्लिम नेता की छवि बनाने की कोशिश है। आगामी चुनावों में उनको मिलने वाला समर्थन तय करेगा कि वे राज्य की राजनीतिक तस्वीर को किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं।

