मारकण्डेय महादेव: जब ऋषि पुत्र ने तप के बदल पर भाग्य की लेखनी को ही पलट दिया

बदलते परिवेश में भारतीय जनमानस को आज भी तीर्थ स्थलों पर सिद्धि और शांति प्राप्त होती है। समय-समय पर पृथ्वी पर ऐसे तपस्वी पैदा हुए हैं। जिन्होंने अपने तप के बदल पर भाग्य की लेखनी को ही पलट दिया। गंगा-गोमती के संगम पर स्थित मारकण्डेय महादेव ‘‘तीर्थधाम’’ इसकी अनुपम मिशाल है। वाराणसी जनपद मुख्यालय से ३४ किमी दूर गंगा गोमती के संगम पर चौबेपुर के वैâथी ग्राम के उत्तरी सीमा पर बना ‘मारकण्डेय धाम’ अपार जनआस्था का प्रमुख केंद्र है। तमाम तरह की परेशानियों से ग्रसित लोग अपने दुःखों को दूर करने के लिए यहां आते हैं। यह स्थान गर्ग, पराशर, शृंगी आदि ऋषियों की तपोस्थली रही है। इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए शृंगी ऋषियों ने पुत्रेष्टि मंत्र कराया था जिसके परिणाम स्वरूप दशरथ को पुत्र प्राप्त हुआ। यही वह तपोस्थली है, जहां राजा रघु द्वारा ग्यारह बार ‘हरिवंश पुराण’ का परायण करने पर उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ था। इस धाम में ‘हरिवंश पुराण’ का परायण तथा ‘संतान गोपाल मंत्र’ का जाप कार्य सिद्धि के लिए विशेष मायने रखता है। पुत्र इच्छा पूर्ति के लिए इससे बढ़कर सिद्धपीठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। मारकण्डेय महादेव
मंदिर की मान्यता है कि ‘महाशिवरात्रि’ और उसके दूसरे दिन श्रीराम लिखा बेलपत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में जब मारकण्डेय ऋषि पैदा हुए थे उन्हें आयुदोष था। उनके पिता ऋषि मृकण्ड को ज्योतिषियों ने बताया कि बालक की आयु मात्र १४ वर्ष है। यह सुन पिता सदमें में आ गये। ज्ञानी ब्राह्मणों की सलाह पर बालक मारकण्डेय के माता-पिता ने गंगा-गोमती संगम तट पर बालू से शिव विग्रह बनाकर शिव की अर्चना करने लगे तथा भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये। बालक मारकण्डेय के जैसे ही १४ वर्ष पूरे हुए तो यमराज उन्हें लेने आ गए। बालक मारकण्डेय भी उस वक्त भगवान शिव की आराधना में लीन थे। उनके प्राण हरने के लिए जैसे यमराज आये तभी भगवान शंकर जी प्रकट हुए। भगवान शिव के साक्षात प्रकट होते ही यमराज को अपने पांव वापस लेने पड़े। भगवान शिव ने कहा कि मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा। मुझसे पहले इसकी पूजा की जायेगी। और यह स्थल मारकण्डेय महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गये। उसी समय से शंकर भगवान के मंदिर में ही मारकण्डेय महादेव की पूजा होने लगी। मान्यता है कि महाशिवरात्रि व सावन मास में यहां राम-नाम लिखा बेलपत्र व एक लोटा जल चढ़ाने से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। यही वजह है कि सावन मास तथा महाशिवरात्रि पर पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से लाखों भक्त जलाभिषेक करने के लिए यहां आते हैं। शिवरात्रि के अवसर पर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह भक्तों की कतार लगी रहती हॅै। सावन मास में यहां एक माह मेला लगता है। मंदिर स्थित गंगा-गोमती के संगम से श्रद्धालु जल लेकर मारकण्डेय एवं शिव को चढ़ाते है। मंदिर के महंत एवं पुजारी के अनुसार यह शिवधाम द्वापर के पूर्व का है। यानि स्थापना पूरातन है। महाभारत के वनपर्व के ८४ अध्याय में इसका वर्णन है। गर्भगृह में ५ फीट घेरे वाला डेढ़ फीट ऊंचा सफेद रंग का अद्भुत एवं
सुंदर शिवलिंग स्थापित है। पुजारी के अनुसार यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन को आते है। प्रतिदिन सैकड़ों लोग दर्शन करते है। सावन एवं शिवरात्रि जैसे अवसरों पर यहां मेले जैसा दृश्य रहता है। इस स्थल को शिवधाम भी कहते है। मंदिर परिसर काफी बड़ा है। मंदिर में ही कई देवी-देवताओं के मंदिर है। प्रवेशद्वार काफी बड़ा है। बाहर की तरफ प्रशासनिक देखरेख में भक्तों के आने जाने के कारण गैलरी बनायी गयी है। जहां समय-समय पर कतार में लगे भक्त दर्शन के लिए आते हैं। दोनों तरफ माला-फूल, पूजन सामग्री एवं कास्टमेटिक आदि की दर्जनों दुकानें हमेशा सजी रहती है। मंदिर की पूजा एवं देखरेख पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहे पुजारियों का लगभग दो सौ परिवार करता है। सभी के लिए मंदिर परिसर में आवास की व्यवस्था है। वहीं दूर-दराज से आये भक्तों को ठहरने एवं पूजन आदि विधान करने के लिए अतिथिगृह भी बना है। समय-समय राजनीतिक दल एवं भक्त मंदिर का सुन्दरीकरण कराते रहते है। विदेशी पर्यटक भी यहां भ्रमण के लिए आते है। प्रशासन द्वारा कभी-कभी धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते रहते हैं।

