अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार!,सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल १९६७ में ‘अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य’ मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने ४-३ के बहुमत से यह आदेश दिया।साल २००६ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जिस पर सुनवाई के दौरान साल २०१९ में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामले को सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। सुनवाई के दौरान सवाल उठा था कि क्या कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्या वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है? इस मामले पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने बीती १ फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल १९६७ के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट कर दिया कि कानून द्वारा बनाए गए संस्थान को भी अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। अब नई बेंच यह फैसला करेगी कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ३ जजों की नई बेंच बनाई है। उन्होंने निर्देश दिया कि बेंच इस बात की जांच करे कि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना किसने की, इसके पीछे किसका दिमाग था। अगर यह सामने आता है कि इसके पीछे अल्पसंख्यक समुदाय था तो आर्टिकल ३० के तहत एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकती है।

