“आचार्य विद्यानंद की शताब्दी पर बोले पीएम मोदी: ‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि स्वीकार की, नौ संकल्प दोहराए”

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैन आध्यात्मिक गुरु आचार्य विद्यानंद महाराज की जयंती के शताब्दी समारोह में भाग लिया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि आचार्य विद्यानंद जी के विचारों ने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को दिशा दी है। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का जिक्र करते हुए बताया कि एक जैन संत ने इसके लिए आशीर्वाद दिया था। जब पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, “जो हमें छेड़ेगा…” तो कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने जोरदार ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए, हालांकि प्रधानमंत्री ने इस विषय पर आगे कुछ नहीं कहा।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान अपने नौ संकल्पों को भी दोहराया और सभी से इनके पालन की अपील की। ये संकल्प हैं:
1. पानी बचाना2. मां की याद में एक पेड़ लगाना
2. मां की याद में एक पेड़ लगाना
3. स्वच्छता को जीवन का हिस्सा बनाना
4. ‘वोकल फॉर लोकल’ को अपनाना
5. देशभर की यात्रा करना
6. प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करना
7. सेहतमंद जीवनशैली अपनाना
8. खेल और योग को जीवन में शामिल करना
9. गरीबों की मदद करना
अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, “हम भारत की आध्यात्मिक परंपरा के एक ऐतिहासिक क्षण के साक्षी हैं। आचार्य विद्यानंद मुनिराज की जन्म शताब्दी एक प्रेरणादायक वातावरण का निर्माण कर रही है।” उन्होंने आचार्य श्री को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए कहा कि 28 जून 1987 को उन्हें आचार्य पद की उपाधि मिली थी, जो सिर्फ एक सम्मान नहीं, बल्कि विचार, संयम और करुणा की एक पवित्र धारा की शुरुआत थी।
समारोह के दौरान मोदी को ‘धर्म चक्रवर्ती’ की उपाधि भी दी गई। इसे स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “मैं खुद को इसके योग्य नहीं मानता, लेकिन हमारे संस्कार हैं कि संतों से जो कुछ भी मिले, उसे प्रसाद मानकर स्वीकार करना चाहिए। मैं यह उपाधि भारत माता के चरणों में अर्पित करता हूं।”
प्रधानमंत्री ने भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “भारत की अमरता का कारण हमारे विचार, दर्शन और चिंतन हैं, जो हमारे संतों और आचार्यों की देन हैं। आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज इसी परंपरा के आधुनिक प्रकाश स्तंभ हैं। उन्होंने हमेशा सेवा को धर्म का मूल बताया।”
पीएम मोदी ने यह भी बताया कि प्राकृत भाषा, जो भगवान महावीर के उपदेशों की भाषा रही है, अब उपेक्षा के कारण विलुप्त होती जा रही थी। लेकिन उनकी सरकार ने प्राकृत को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा देकर इसके संरक्षण की दिशा में कदम उठाया है। साथ ही देश की प्राचीन पांडुलिपियों को डिजिटलीकरण करने का भी कार्य जारी है।
अंत में उन्होंने कहा कि भारत को अपनी विकास यात्रा और सांस्कृतिक विरासत को साथ लेकर आगे बढ़ना है, और सरकार इसी सोच के साथ तीर्थस्थलों और सांस्कृतिक धरोहरों का विकास कर रही है।

