स्वयं सावित्री माँ

” मातृ-दिवस “पर विशेष”
लेबर रूम के टेबल पर प्रसव- पीड़ा से
छटपटाती बेटी को डबडबाई आंखों से निहारती मां!
गोल-मटोल नातिन को कमज़ोर पड़ते हाथों से नहलाती, मालिश करती, घुटनों में दबा कर चम्मच -चम्मच दूध पिलाती शांत मां!
आई.सी.यू.में अधसोयी-जागी -सी,बेड से सिर टिकाए ऊंघती बेटी के बालों में अपनी बेजान पड़ती सुखट्टी उंगलियां चलाती मां!
भरे -पूरे कुनबे के साथ मोहल्ले भर की बुआ, भाभी, चाची,ताई,नानी, दादी बन, रेशमी रिश्ते -नातों को प्यार, ममता और अपनत्व की क्रोशिया पर बुनती, कुछ गुनती सी मां!
अमिताभ बच्चन की जबरदस्त फ़ैन मेरी भोली डायबिटिक मां!’कुली’के सेट पर घायल अमिताभ की पीड़ा में बिना खाए- पिए टेसुए बहाती मां!
कहती -“हमार अमितभवा उहां मौत से जूझत है, इहां हमरी गटई से कौर कैसे उतरी”आखिरी वक्त भी नाती-पोतों को देसी घी खिलाने को,पाव भर दूध पांच बार स्टोब पर औंटती,मलाई निकालती धीरज वाली मां!
आंगन के खम्भे से टिकी, स्टील की तश्तरी थामे भगवान के लिए रसोई का पहला भोग मांगती मां!
कुछ अवधी कुछ भोजपुरी मां! मेरी रचनाओं की पहली श्रोता, आलोचक -समीक्षक सबकुछ थी -“स्वयं सावित्री” मेरी मां!!
मोटे फ़्रेम के चश्मे से पढ़ लिए थे उसने
‘तीन अध्याय ‘ जल्दी से और चल पड़ी अनंत यात्रा पर,सदा सुहागिन जिंदादिल मां!!
मेरे किरदार में मिश्री सी घुली मिली मां!!
**डॉ.एस.बाला*

