सिर्फ उत्पीड़न आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं मान सकते -सुप्रीम

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज। दो दिन पूर्व बंगलूरू में एक इंजीनियर द्वारा पत्नी और ससुराल वालों की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या करने के मामले को लेकर देश भर में कार्यवाई की मांग जोरो पर बनी हुई है। लेकिन इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या से जुड़े एक दूसरे मामले में बड़ा और अहम फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में किसी को दोषी ठहराने के लिए केवल उत्पीड़न करना ही पर्याप्त कारण नहीं है बल्कि इसके लिए स्पष्ट सबूत होने चाहिए। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने यह टिप्पणी, गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए की। इस याचिका में एक महिला को कथित रूप से परेशान करने और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में उसके पति और उसके सास-ससुर को आरोपमुक्त करने की मांग की थी।
पीठ ने कहा- आत्महत्या के लिए उकसाने के पर्याप्त सबूत नहीं महिला की आत्महत्या के मामले में महिला के पति और उसके सास-ससुर के खिलाफ साल २०२१ में भारतीय दंड संहिता की धारा ४९८-ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) और धारा ३०६ (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसमें १० साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। १० दिसंबर को दिए अपने फैसले में पीठ ने कहा, ‘आईपीसी की धारा ३०६ के तहत दोषसिद्धि के लिए यह एक स्थापित कानूनी सिद्धांत है कि दोषी का आत्महत्या को बढ़ावा देने का इरादा होना चाहिए और सिर्फ उत्पीड़न ही आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।’सिर्फ अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए
पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में केवल अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता और इसके पुख्ता सबूत होने चाहिए। पीठ ने तीनों लोगों को धारा ३०६ के तहत आरोप से मुक्त कर दिया, लेकिन अदालत ने आईपीसी की धारा ४९८-ए के तहत अपीलकर्ताओं के खिलाफ आरोप को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि महिला की शादी २००९ में हुई थी और शादी के पहले पांच साल तक दंपति को कोई बच्चा नहीं हुआ, जिसके कारण उसे कथित तौर पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। पीठ ने आगे कहा कि अप्रैल २०२१ में महिला के पिता को सूचना मिली कि उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ आईपीसी की धारा ३०६ और ४९८-ए के तहत आरोप तय करने के सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था।

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