सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम 2025 की वैधता पर जताई गहरी चिंता, तीन प्रमुख प्रावधानों की समीक्षा पर विचार

नई दिल्ली, जनमुख न्यूज़। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को संकेत दिया कि वह वक्फ अधिनियम, 2025 के कुछ विवादास्पद प्रावधानों के अमल पर अंतरिम रोक लगाने पर विचार कर सकता है। इनमें ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की अवधारणा, वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान, और विवादित वक्फ भूमि पर कलेक्टर को अधिकार देने जैसी प्रमुख धाराएं शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, “हम आम तौर पर कानून के इस प्रारंभिक चुनौती के चरण में रोक नहीं लगाते, लेकिन यह मामला अपवाद प्रतीत होता है। हमारी चिंता यह है कि यदि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ को गैर-अधिसूचित कर दिया गया, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।”
वक्फ-बाय-यूजर वह संपत्ति होती है जिसका उपयोग लंबे समय से मुस्लिम धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए हो रहा है, चाहे वह पंजीकृत हो या नहीं। नए कानून में इस अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है, जिससे लगभग 4 लाख से अधिक वक्फ संपत्तियों की वैधता संकट में पड़ सकती है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि 1923 से वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य रहा है, और जो संपत्तियाँ पंजीकृत हैं, वे यथावत रहेंगी। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि “विवाद में” और “सरकारी संपत्ति” जैसे शब्दों की व्याख्या कैसे की जाएगी? उन्होंने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की ओर इशारा करते हुए कहा कि “14वीं-17वीं शताब्दी की मस्जिदों से पंजीकृत दस्तावेज़ की अपेक्षा नहीं की जा सकती।”
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने दलील दी कि नए संशोधन से हजारों ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। सिंघवी ने कहा कि यह “एक ही झटके में हजारों वर्षों की परंपरा को मिटा सकता है,” वहीं सिब्बल ने इसे “200 मिलियन भारतीय मुसलमानों की आस्था पर सीधा अतिक्रमण” बताया।
कोर्ट ने संकेत दिया कि वह इस मामले पर 17 अप्रैल को दोपहर 3 बजे दोबारा सुनवाई करेगा और तब तक कोई अंतरिम आदेश नहीं देगा। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट यह तय करेगा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में ही चले या किसी हाईकोर्ट को सौंपा जाए।

