समाज की मुख्य धारा से कटे हुए हैं ट्रांसजेंडर, अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी पर जताई गई चिंता

वाराणसी, जनमुख न्यूज़। रविवार 30 मार्च 2025 को अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी के पूर्व संध्या पर प्रिज्मैटिक फाउंडेशन की ओर से पहचान संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। कुशवाहा धर्मशाला, छित्तूपुर, सिगरा, वाराणसी में शहर के ट्रांस नागरिक और एलजीबीटी समुदाय के लोगो ने अपनी पहचान, सम्मान और सशक्तिकरण के लिए यह आयोजन किया।
एलजीबी समुदाय के लिए लम्बे समय से काम कर रही और आयोजक संस्था ‘ प्रिज्मैटिक फाउंडेशन ‘ के ओर से नीति ने कार्यक्रम का उद्देश्य बताया। इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ़ विजिबिलिटी (International Transgender Day of Visibility – TDOV) प्रतिवर्ष 31 मार्च को दुनिया भर में ट्रांसजेंडर लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने की सोच से मनाया जाता है। साथ ही समाज में इस समुदाय के योगदान को सम्मान पूर्वक याद करते हुए हम आज के कार्यक्रम में जश्न भी मना रहें हैं। इस दिवस पर आयोजन की शुरुआत 2009 में अमेरिका में हुआ है।
भारी संख्या में जुटे ट्रांस नागरिकों और एलजीबीटी समुदाय के लोगों के बीच बीएचयू शिक्षिका डॉ प्रियंका सोनकर ने ट्रांस नागरिको की साहित्य में महत्वपूर्ण किरदारों के रूप में उपस्थिति पर बात रखी।
ट्रांसजेंडर नागरिको की समस्या पर बात रखते हुए आरोही ( जो की स्वयं ट्रांसजेंडर नागरिक पहचान पत्र प्राप्त हैं ) ने बताया की किसी बहुत सम्पन्न पैसे वाले घर मे भी कोई एक सदस्य बीमार मरणासन्न पड़ा हो तो क्या उस परिवार में कोई खुश रह सकता है ? हमारा समाज भी एक बड़ा परिवार है। जब इस परिवार के एक हिस्से ट्रान्सजेंडर नागरिको को लगातार मजाक उपेक्षा घृणा और हिंसा का शिकार बनाया जाता रहेगा तो समाज खुशहाल और संपन्न कैसे होगा ? ट्रान्सजेंडर नागरिक स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, बैंक, डाकखाने , रेलवे, बस, हवाई जहाज आदि में क्या आपको नौकरी करते हुए दिखते हैं ? ठेले – खोमचे, दुकान से लेकर बड़ी कंपनी और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में क्या आपने किसी ट्रान्सजेंडर को काम करते हुए देखा है ? सोचने की बात है कि समाज का एक हिस्सा समाज मे दिखता ही नही है। ट्रांसजेंडर नागरिकों का क्या अपराध है जो उन्हें समाज के मुख्यधारा से वंचित रखा गया है ?
विधि संकाय बीएचयू छात्र अमृत ने कहा कि संविधान कहता है कि सभी नागरिक समान हैं। लेकिन क्रिमिनल ट्राइब ऐक्ट अंग्रेजों ने बनाकर हिजड़ा समुदाय को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था। आजादी के बाद भी गुलामी के वही कानून चलते रहे। भारत सरकार ने ट्रांसजेंडर ऐक्ट 2020 बनाकर पहचान सम्मान की शुरुवात करी। देश भर में सभी सरकारी विभागों में लैंगिक भेदभाव शिकायत के लिए कमेटी बनाने के नियम बने। मगर संसदीय कार्यवाही की रपट में पता चला है कि 30 करोड़ के आवंटित बजट में मात्र 12 लाख रुपए ही खर्च हो पाए। जबकि शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार की सुविधा ट्रांसजेंडरों को आज भी मिलती हुई नहीं दिखती।

ऐक्ट कहता है कि किसी तरह के उत्पीडन की स्थिति में जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस महानिदेशक के प्रभार में ट्रांसजेंडर सुरक्षा सेल काम करेगी। हम सबको बाबा साहब के नारे शिक्षित बनो संगठित हो संघर्ष करो के साथ जानकारी लेते हुए आगे बढ़ें।
मीनू ने बनारस के संदर्भ में ट्रांसजेंडर नागरिको को संविधान प्रदत्त अधिकार कैसे मिले विषय पर बात रखी। सामाजिक कार्यकर्ता छात्र अधिवक्ता प्रशासन आदि सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है | ट्रांसजेंडर नागरिक जागरूक हों और सशक्त हों , इस उद्देश्य से बनारस में प्रिज्मैटिक इण्डिया की स्थापना की गयी है | उन्होंने कहा कि आज के आयोजन की तरह आगे भी समावेशी प्रकृति के कार्यक्रमों की निंरतरता बनाए रखने की जरूरत है।
कार्यक्रम का संचालन अनन्या मीठी और धन्यवाद ज्ञापन मूसा आज़मी ने किया। वार्ता में प्रिज्मैटिक इण्डिया की ओर से अनामिका, श्रेया, हेतवी, रूमान, मिली, निहारिका, श्रुति साहिल, दीक्षा , आयुष, तानिया, सैम, आदि सक्रिय रूप से शामिल रहे |

