संविधान दिवस पर काशी और तमिल संस्कृति का अनोखा संगम

वाराणसी, जनमुख न्यूज़। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत काशी तमिल संगमम-4 का आयोजन 2 दिसंबर से वाराणसी में होने जा रहा है। यह पूरा आयोजन शिक्षा मंत्रालय की देखरेख में हो रहा है। वाराणसी में इस आयोजन की मेजबानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा हो रहा आयोजन से पहले तमाम आयोग प्रोग्राम के तहत लोगों को इस कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा।
इसक्रम में नमो घाट के पावन तट पर “इंस्टॉलेशन आर्ट प्रतियोगिता–2025” का भव्य आयोजन किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य काशी और तमिलनाडु की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव मनाना था। “Celebrating the Cultures of Kashi and Tamil Nadu” थीम पर आधारित इस प्रतियोगिता में BHU सहित अन्य कालेज के 70 से अधिक स्टूडेंट्स ने प्रतिभाग किया है। प्रतियोगिता सुबह 10 बजे आरंभ होकर शाम 5 बजे तक चली, जिसमें प्रतिभागियों ने व्यक्तिगत तथा समूह दोनों रूपों में भाग लिया।
इस प्रतियोगिता में 70 से ज्यादा छात्र एवं छात्राओं ने उत्सापूर्वक प्रतिभाग किया। इस प्रतियोगिता के दौरान सभी प्रतिभागियों ने 5 समूहों में कार्य किया जोकि निम्निलिखित है- महादेव, फाइफ स्टार,पंचभौतिकी, टीम 4.0, सैवन स्पार्क रखा गया था
इस आयोजन में प्रस्तुत इंस्टॉलेशन आर्ट कृतियों में मंदिर स्थापत्य, द्रविड़ एवं नागर शैली की झलक, काशी की गलियों की जीवंतता, काशी विश्वनाथ मंदिर के आध्यात्मिक दृश्यों, नटराज की गतिमय आकृति तथा तमिलनाडु के पारंपरिक नृत्य-संगीत तत्वों को दर्शाया गया। कलाकारों ने लकड़ी, मिट्टी, कपड़े, धातु, लालटेन, जूट और पुनर्चक्रित सामग्री का उपयोग करते हुए सांस्कृतिक एकता और परंपराओं के गहरे संबंध को रचनात्मक रूप से व्यक्त किया।
कार्यक्रम के समन्वयक, फेकल्टी ऑफ विजुअल आर्ट्स के सहायक प्रोफेसर साहेब राम तुडु और डॉ. अशिष कुमार गुप्ता ने बताया कि इस प्रतियोगिता का उद्देश्य छात्रों को न केवल कलात्मक स्वतंत्रता देना है बल्कि उन्हें भारतीय सांस्कृतिक विविधताओं को अनुभवात्मक रूप से समझने का अवसर प्रदान करना भी है। उनकी मान्यता है कि काशी और तमिलनाडु का ऐतिहासिक व आध्यात्मिक रिश्ता कला के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाना आवश्यक है।
स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों ने भी बड़ी संख्या में पहुँचकर इस सांस्कृतिक कला-उत्सव का आनंद लिया। नमो घाट की सुंदरता और कलाकारों की रचनात्मक अभिव्यक्तियों ने इसे एक यादगार आयोजन बना दिया। कार्यक्रम की सफलता ने सिद्ध कर दिया कि कला दो संस्कृतियों के बीच सेतु का कार्य करते हुए एकता, सौहार्द और परंपरा के साझा धागों को और अधिक मजबूती देती है।
आयोजन का नेतृत्व नोडल अधिकारी प्रो. अंचल श्रीवास्तव (बीएचयू) द्वारा किया गया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. मनीष अरोरा, सह–संयोजक सुश्री सृष्टि प्रजापति, तथा समन्वयक डॉ. आशिष कुमार गुप्ता और श्री विजय भगत रहे। निर्णायक मंडल में डॉ. शांति स्वरूप सिन्हा और श्री विजय भगत शामिल थे, जिन्होंने सभी समूहों के कार्यों का मूल्यांकन किया और प्रतिभागियों को प्रेरित किया।

