दिल्ली में भूकंप से सबसे ज्यादा खतरा क्यों?

वैसे आम तौर पर भूंकप के कई कारण होते हैं लेकिन टेक्टोनिक प्लेट्स कारण होने वाले भूकंप बेहद खतरनाक होते हैं। लेकिन सोमवार सुबह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आये भूकंप को लेकर वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र की भूगर्भीय विशेषताओं में प्राकृतिक कारणों से होने वाले बदलावों का परिणाम माना है वैज्ञानिकों ने टेक्टोनिक प्लेट्स को भूकंप की वजह होने से इनकार कर दिया है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर दिल्ली में भूकंप की तीव्रता कम दर्ज किए जाने के बावजूद, इनका प्रभाव इतना तेज क्यों था? इस तरह के भूकंप के झटके पहले कब महसूस किए गए हैं?
कब-कब आया दिल्ली में भूकंप
सबसे पहले जानते हैं कि दिल्ली और उसके आस-पास कब-कब भूकंप के झटके महसूस किए गए तो साल १८०३ में हिमालय क्षेत्र में ७.५ मैग्नीट्यूड का भूकंप आ चुका है। साल १९९१ में उत्तरकाशी में ६.८ तीव्रता वाला और १९९९ में चमोली में ६.६ तीव्रता वाला भूकंप आ चुका है। साल २०१५ में नेपाल में भी ७.८ तीव्रता का भूकंप आया था। इनके अलावा हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला क्षेत्र में भी कई मध्यम तीव्रता के भूकंप आ चुके हैं। दिल्ली या आसपास के क्षेत्रों की बात करें तो साल १७२० में दिल्ली में ६.५ मैग्नीट्यूड, साल १८४२ में मथुरा में ५ मैग्ननीट्यूड, साल १९५६ में बुलंदशहर में ६.७ मैग्नीट्यूट और साल १९६६ में मुरादाबाद में ५.८ मैग्नीट्यूड का भूकंप आ चुका है।
भूकंप से दिल्ली में भारी तबाही का खतरा सबसे ज्यादा क्यों?
दिल्ली और उसके आस-पास इतने ज्यादा भूकंप के झटकों की बात करें तो दरअसल, दिल्ली-एनसीआर की भौगोलिक स्थिति इसे भूकंप के प्रति संवेदनशील बनाती है। यह क्षेत्र सीस्मिक जोन-घ्न्न् में स्थित है। क्षेत्र में सक्रिय फॉल्ट लाइनों की उपस्थिति के कारण समय-समय पर हल्के भूकंप आते रहते हैं। यह क्षेत्र भूकंप के मामले में दूसरे सबसे खतरे वाले वर्ग में शामिल है। हालांकि, अब तक अधिकतर भूकंप के झटके मामूली रहे हैं और इनसे गंभीर नुकसान नहीं हुआ है। इस बारे में बारे में बात करें तो वैज्ञानिक ओपी मिश्रा का कहना है कि दिल्ली क्षेत्र में मध्यम से खतरनाक स्तर के भूकंप आ सकते हैं। दिल्ली भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है और यह सिस्मिक जोन-४ के अंतर्गत आती है। इस जोन के इलाकों में भूकंप का खतरा ज्यादा रहता है। दिल्ली आपदा प्रबंधन अधिकरण के अनुसार, इस जोन में तेज भूकंप आने का खतरा रहता है और इन भूकंपों की तीव्रता ५-६ मैग्नीट्यूड हो सकती है। वहीं कुछ भूकंप ७-८ मैग्नीट्यूड तीव्रता के भी हो सकते हैं। साल १७२० से दिल्ली में कम से कम पांच भूकंप आए हैं, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर ५.५ रही। इससे पहले साल २०२० में भी दिल्ली में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। हालांकि उनकी तीव्रता ३ ही थी। धरती की क्रस्ट की सबसे बाहरी परत बड़े और कठोर पत्थरों के स्लैब से बनी होती है, जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। करीब सात बड़ी और छोटी टेक्टोनिक प्लेट्स होती हैं, ये प्लेट्स बेहद धीमी गति से हिलती हैं, जिसकी वजह से ही भूकंप आते हैं। उत्तर भारत में, जहां हिमालय पर्वत भी आते हैं, यहां भारतीय टेक्टोनिक प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराव होता रहता है, जिसकी कंपन से ही भूकंप आते हैं। इन टेक्टोनिक प्लेट के टकराने से बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो भूकंप का कारण बनती है। भूकंपीय क्षेत्र ४ में होने के अलावा, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा किए गए विश्लेषण में पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में भूकंप रोधी इमारतों की संख्या बेहद कम है, साथ ही यहां जनसंख्या घनत्व भी काफी ज्यादा है और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों के कारण और अनियोजित विकास के चलते दिल्ली में भूकंप का खतरा बड़ा है। दिल्ली में अगर तेज तीव्रता का भूकंप आता है तो वह भारी तबाही मचा सकता है।
कम तीव्रता के बाद भी तेज झटके क्यों
दिल्ली में भूकंप के बाद भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत भूकंप के रिकॉर्ड रखने वाली संस्था- नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक झटकों की तीव्रता ४.० होने के बावजूद कंपन इतना तेज होने की वजह यह रही कि भूकंप का केंद्र दिल्ली में ही पृथ्वी की सतह के करीब पांच किलोमीटर नीचे था, जिसकी वजह से धरती में कंपन का असर काफी तेज रहा।
मिश्रा ने बताया कि इस तरह के शैलो (जमीन में ५ से १० किलोमीटर की गहराई से आने वाले) भूकंप, ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। सतह से निकटता के कारण हल्के भूकंप आमतौर पर गहरे भूकंपों की तुलना में अधिक तीव्र महसूस किए जाते हैं। हालिया भूकंप दिल्ली के धौला कुआं इलाके में जमीन के पांच किलोमीटर नीचे दर्ज किया गया।
क्या है ऑफ्टर शॉक और कितना खतरनाक है?
वैसे आज के भूकंप के बाद ऑफ्टर शॉक्स की संभावना बनी हुई। दरअसल भूकंप के बाद अक्सर कई झटके आते हैं, जो घंटों या कई दिनों तक जारी रहते हैं। ये झटके भूकंप के कारण हुई क्षति में और बढ़ोतरी करते हैं। हालांकि, झटके मुख्य भूकंप की तुलना में कमजोर होते हैं, लेकिन ये व्यापक नुकसान पहुंचा सकते हैं। कई बार जब मुख्य भूकंप की तीव्रता ज्यादा होती है, तो उसके ऑफ्टरशॉक्स भी तेज रहते हैं और यह झटके राहत और बचाव कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी तो बचावकर्मी भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। इन ऑफ्टरशॉक्स के आने की समयावधि तय नहीं होती। कई बार यह कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, तेज भूकंप की स्थिति में २४ से ४८ घंटे के अंदर आने वाले ऑफ्टरशॉक्स सबसे खतरनाक माने जाते हैं।
इसे लेकर आज भूकंप के बाद पीएम मोदी ने लोगों चेतावनी भी दी और सर्तक रहने को कहा।

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