भगवान शिव की शादी की रस्म शुरु, हल्दी लेकर पहुंचे नागा साधु

वाराणसी, जनमुख न्यूज। ‘पहिरे ला मुंडन क माला मगर दुल्हा लजाला..’,‘दुल्हा के देहीं से भस्मी छोड़ावा सखी हरदी लगावा ना…’,’शिव दुल्हा के माथे पर सोहे चनरमा…।’ ये उन गीतों की पंक्तियां हैं जो सोमवार की शाम काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर गुंजायमान हो रही थीं। अवसर था भगवान शिव के विवाह से पूर्व हल्दी के लोकाचार का। मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इन्ही मान्याताओं के अनुसार काशी में शिव विवाह की रस्म निभाई जाती है। जिसके लिए विवाह की रस्में कई दिन पहले से शुरु हो जाती हैं।
महाशिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ से जुड़ी लोकपरंपरा का निर्वाह इस वर्ष श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा के नागा साधुओं एवं महात्माओं की ओर से किया गया। श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा की ओर से बाबा के लिए हल्दी महाराणा प्रताप की धरती मेवाड़ से मंगाई गई। श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़ा की उदयपुर शाखा के प्रभारी संत दिगंबर खुशहाल भारती के नेतृत्व में नागा साधुओं एवं संन्यासियों का समूह मणिकर्णिका तीर्थ से शोभायात्रा के रूप में टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास के लिए प्रस्थान किया। डमरुओं की गर्जना और हरहर महादेव के घोष के साथ साधु-संतों और गृहस्थ भक्तों का समूह महंत आवास पहुंचा। एक थाल में हल्दी, ११ थाल में फल, पांच थाल में मेवा-मिठाई, एक थाल में वस्त्र और एक थाल में आभूषण लेकर वे महंत आवास पहुंचे। यहां परंपरागत ढंग से सभी का स्वागत किया गया। संत दिगंबर शुखहाल भारती ने बाबा के लिए मेवाड़ से मंगाई गई हल्दी की थाल, जिसका पूजन प्रयागराज में किया गया था, बाबा को अर्पित की। महंत परिवार के सदस्यों ने सभी साधु-महात्माओं को अंगवस्त्रम् एवं रुद्राक्ष की माला भेंट कर उनका स्वागत किया।
इसके बाद महिलाओं ने हल्दी की रस्म पूरी की। एक तरफ मंगल गीतों का गान हो रहा था दूसरी तरफ बाबा को हल्दी लगाई जा रही थी। मांगलिक गीतों से महंत आवास गुंजायमान हो रहा था। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित गीत गाए गए। ‘अड़भंगी क चोला उतार शिव दुल्हा बना जिम्मेदार’, और ‘भोले के हरदी लगावा देहिया सुंदर बनावा सखी…’आदि हल्दी के गीतों में दुल्हे की खूबियों का बखान किया गया तो दूल्हन का ख्याल रखने की ताकीद भी की गई। मंगल गीतों में यह चर्चा भी की गई कि विवाह के लिए तैयारियां कैसे की जा रही हैं। नंदी, शृंगी, भृंगी आदि गण नाच-नाच कर सारा काम कर रहे हैं। शिव का सेहरा और पार्वती की मौरी कैसे तैयार की जा रही है। हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए ‘साठी क चाऊर चूमिय चूमिय..’ गीत गाकर महिलाओं ने भगवान शिव की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। बाबा के तेल-हल्दी की रस्म दिवंगत महंत डा. कुलपति तिवारी की पत्नी मोहिनी देवी के सानिध्य में हुई। पूजन अर्चन का विधान उनके पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने पूर्ण किये। बाबा को खास बनारसी ठंडई, पान और पंचमेवा का भोग लगाया गया। इससे पूर्व बाबा का विशेष राजसी-स्वरूप में शृंगार संजीव रत्न मिश्र ने किया।

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